कोरोना से ठीक हुए बच्चों में दोबारा इन्फेक्शन का खतरा कम, लेकिन संक्रमित के संपर्क में आने पर दोगुना रिस्क

अपूर्वा मंडावली. कोरोनावायरस से ठीक होने वाले मरीजों में बनने वाली एंटीबॉडी को लेकर अमेरिका में एक नई स्टडी सामने आई है। स्टडी के मुताबिक कोरोनावायरस से ठीक हुए बच्चों में बनने वाली एंटीबॉडी एडल्ट की तुलना में काफी कमजोर होती है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इम्यूनोलॉजिस्ट डोना फार्बर के मुताबिक बच्चे कोरोना से ठीक होने के कुछ दिनों बाद तक भी संक्रमण का कारण बन सकते हैं। यानी ठीक होने के बाद भी बच्चों से किसी दूसरे को कोरोना होने का खतरा बना रहता है।
लेकिन, एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि बच्चों में कमजोर एंटीबॉडी बनने का यह मतलब कतई नहीं है कि उनमें दोबारा कोरोना के सिम्पटम्स दिखने का रिस्क है।
बच्चों के इम्यून सिस्टम को मजबूत करें
अरिजोना यूनिवर्सिटी में इम्यूनोलॉजिस्ट दीप्ता भट्टाचार्या कहती हैं कि कोरोना से रिकवर होने वाले बच्चों का इम्यून सिस्टम समान्य से थोड़ा कमजोर हो जाता है। यह बहुत जरूरी है कि पैरेंट्स उनके इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने पर ध्यान दें। अक्सर बच्चे खाने-पीने को लेकर काफी लापरवाह होते हैं। फास्ट फूड और स्नैक्स उनको ज्यादा पसंद होता है। इसलिए पैरेंट्स की भूमिका अहम हो जाती है कि वे बच्चों के खान-पान पर विशेष नजर रखें।
बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत करने के इन पर ध्यान दें
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दूध-हल्दी
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हरी पत्तेदार सब्जियां
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अंकुरित बीज और नट्स
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ड्राई फ्रूट
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एक्सरसाइज
बच्चों में माइल्ड सिम्पटम्स होने पर भी रिस्क ज्यादा
- डॉ. फार्बर और उनके साथियों ने अलग-अलग एज ग्रुप के कोरोना पीड़ितों पर स्टडी की। स्टडी के दौरान यह पता चला कि माइल्ड सिमटम वालों में एंटीबॉडी ज्यादा पाई जाती है। जबकि भारी सिमटम वालों में कम। स्टडी के मुताबिक माइल्ड सिमटम वाले कोरोना मरीजों में कमजोरी कम होती है जिसके चलते शरीर का इम्यून सिस्टम जल्दी रिकवर हो जाता है। जबकि भारी सिम्पटम वालों में कमजोरी काफी ज्यादा हो जाती है, इसलिए उनके इम्यून सिस्टम को रिकवर होने में 50 से 90 दिन लग जाते हैं।
- इन्हीं वजहों के चलते माइल्ड सिम्पटम्स वालों के प्लाज्मा में कोरोना एंटीबॉडी की संख्या भारी सिम्पटम्स वालों की तुलना में ज्यादा पाई जाती है। 16 साल से कम उम्र के बच्चों में कोरोना से कमजोरी बहुत ज्यादा हो जाती है, चाहे उनमें माइल्ड सिम्पटम्स ही क्यों न हो। जिसके चलते उनके शरीर में एंटीबॉडी काफी कम बनती है।
बच्चों में बस एक तरह की ही एंटीबॉडी बनती है
- कारोलिंस्का इंस्टिट्यूट में इम्यूनोलॉजिस्ट पीटर ब्रॉडीन कहते हैं कि कोरोनावायरस के बाद कई तरह की बीमारियों और सिंड्रोम के होने का खतरा बना रहता है। शरीर इन सब से लड़ने के लिए कई तरह की एंटीबॉडी बनाता है। लेकिन 16 साल से कम के बच्चों में एक ही तरह की एंटीबॉडी बनती है जिसे IGG कहते हैं।
- बच्चों में बन रहे इस एक एंटीबॉडी के चलते ही एडल्ट की तुलना में उनमें एंटीबॉडी काउंट लो पाई जाती है। लेकिन, बहुत ज्यादा पैनिक होने की बात इसलिए नहीं है, क्योंकि यह एक एंटीबॉडी भी कोरोना से लड़ने के लिए काफी हद-तक कारगर है। लेकिन, दूसरी बीमारियों और वायरस से लड़ने के लिए यह उतनी कारगर नहीं है।
- इसलिए बच्चों के इम्यून सिस्टम को मजबूत करना जरूरी है। कोरोनावायरस से ठीक हुए बच्चों में दूसरी बीमारियों के होने का खतरा अगले 3 महीनों तक बना रहता है। इसलिए जितना ज्यादा हो सके पैरेंट्स उनकी सुरक्षा का ध्यान रखें।
सामान्य से दोगुना ज्यादा बच्चों में दोबारा संक्रमण का खतरा
- एक्सपर्ट्स के मुताबिक ठीक हुए बच्चों में ज्यादा कमजोरी और कमजोर एंटीबॉडी के चलते संक्रमण का खतरा आम बच्चों से दोगुना ज्यादा होता है। इसलिए बच्चों को कोरोना प्रोटोकॉल सही ढंग से पालन करने को कहें।
- कोरोनावायरस संक्रमण का खतरा उन लोगों में ज्यादा होता है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। कोरोनावायरस से ठीक हुए बच्चों का इम्यून सिस्टम अगले 50 दिनों के लिए समान्य से 50% तक कमजोर हो जाता है। इसका मतलब ठीक हुए बच्चों में दोबारा संक्रमण का खतरा 90% तक बना रहता है जबकि यह आमतौर पर संक्रमण का खतरा 50% ही होता है।
सर्दियों में ज्यादा केयर की जरूरत
- सर्दियों में नॉर्मल वायरल आमतौर पर ज्यादा फैलता है। इसलिए ऐसे बच्चे जो कोरोना से ठीक हुए हैं, उन्हें ज्यादा केयर की जरूरत है। 10 साल से कम उम्र के ऐसे बच्चे जो कोरोना से ठीक हुए हैं उनमें स्नोफीलिया का भी खतरा बढ़ जाता है। सर्दियों में होने वाला जुकाम अगर 3 महीने तक ठीक नहीं होता तो वह स्नोफीलिया में बदल सकता है।
- कोरोना से ठीक हुए बच्चों को अगर सर्दी के मौसम में जुकाम ज्यादा हो जाएगा तो उसे ठीक होने में सामान्य से ज्यादा दिन लग सकते हैं। इसलिए बच्चों को सर्दियों में ज्यादा केयर की जरूरत है।
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