सोशल एक्टिविस्ट विक्रमादित्य सहाय ने चलाया 'मम्मी की साड़ी प्रोजेक्ट' ताकि महिलाएं घर में रखी पुरानी साड़ियां ट्रांसजेंडर्स और गरीबों को बांट सकें

अधिकांश महिलाएं अपने वार्डरोब में जिन कपड़ों को सबसे ज्यादा रखना पसदं करती हैं, उनमें साड़ी का नाम पहले आता है। लड़कियां अपने स्कूल फेयरवेल में साड़ी पहनती हैं तो शादी की रस्मों के दौरान भी एक से बढ़कर एक खूबसूरत साड़ियां खरीदी जाती हैं।
इन साड़ियों को आप अपनी अलमारी में सजाकर रखना पसंद करती हैं या कई बार ये घर में रखे-रखे ही बेकार हो जाती हैं। सोशल एक्टिविस्ट विक्रमादित्य सहाय ऐसी ही साड़ियों को घर में रखने के बजाय जरूरतमंदों में बांटने की अपील करते हैं।
विक्रमादित्य सहाय ने अपने प्रोजेक्ट मम्मी की साड़ी की शुरुआत भी इसी सोच के साथ की थी कि महिलाओं के वार्डरोब से निकलकर साड़ियां उन ट्रांसजेडर्स और गरीबों तक पहुंच सकें जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं होते।
विक्रम से जब यह पूछा जाता है कि आपको इस प्रोजेक्ट की प्रेरणा कहां से मिली तो वे कहते हैं - मेरे आसपास ऐसे कई लोग हैं जो मुझे साड़ी गिफ्ट करते थे। इस तरह मेरे पास इतनी साड़ी जमा हो गईं कि मैंने इन्हें खरीदना ही बंद कर दिया। ऐसे में मुझे ये लगने लगा कि मैं साड़ी कर अपने पैसे ही बर्बाद करूंगा।

अपने प्रोजेक्ट की शुरुआत करने के लिए विक्रम ने सबसे पहले इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट लिखी और इस पर लोगों की प्रतिक्रिया का इंतजार किया। फिर खुद ही लोगों से मिलकर साड़ियां लेना शुरू किया। कुछ ही दिनों में इंस्टाग्राम के माध्यम से उन्हें पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलने लगा। ऐसी कई महिलाएं भी थीं जिन्होंने साड़ी के साथ विक्रम को साड़ी से जुड़ी अपने यादें भी लिख कर भेजीं।

ट्रांसजेंडर्स हो या महिलाएं, इनके लिए साड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं होता बल्कि ये एक अहसास होता है जिससे आपकी कई यादें जुड़ी होती हैं। फिर चाहें आपको पास कांजीवरम, मुकेश, बनारसी या कॉटन की साड़ी ही क्यों न हो। मम्मी की साड़ी प्रोजेक्ट के जरिये विक्रम का प्रयास होता है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को अपनी साड़ी जरूरतमंदों में बांटने के लिए प्रोत्साहित करें।
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