60 साल की उम्र के बाद नजर आने लगते हैं लक्षण; भारत में 40 लाख से ज्यादा डिमेंशिया के मरीज, 10 तरीकों से इसे पहचान सकते हैं

डिमेंशिया एक तरह का सिंड्रोम है, जिससे जूझ रहे व्यक्ति की सोचने, समझने शक्ति कम हो जाती है। डिमेंशिया के कई प्रकार होते हैं, लेकिन इसका सबसे आम प्रकार अल्जाइमर्स रोग है। अल्जाइमर्स एसोसिएशन की वेबसाइट के मुताबिक, भारत में 40 लाख से ज्यादा लोगों को किसी न किसी तरह का डिमेंशिया है। दुनिया में यह आंकड़ा करीब 5 करोड़ है। आज विश्व अल्जाइमर्स दिवस है यानी इस बीमारी को लेकर जागरूकता का दिन। आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में।

क्या है अल्जाइमर्स रोग
सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, अल्जाइमर्स रोग एक तरह का डिमेंशिया है, जो 60 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को अपना शिकार बना सकता है। अल्जाइमर्स रोग का सबसे बड़ा जोखिम बढ़ती उम्र ही है इस बीमारी का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता जाता है। ऐसा नहीं है कि युवा अल्जाइमर्स का शिकार नहीं होते, लेकिन आमतौर पर ऐसा कम ही होता है।

अल्जाइमर्स एक ऐसा रोग है, जिसमें व्यक्ति की याददाश्त, सोचने और समझने की शक्ति धीरे-धीरे कम होने लगती है। अल्जाइमर्स एसोसिएशन के मुताबिक, इस बीमारी के बढ़ने का स्तर हर मरीज में अलग-अलग होता है, लेकिन औसतन मरीज लक्षण शुरू होने के 8 साल तक जिंदा रहते हैं।

अल्जाइमर्स रोग के शुरुआती लक्षण क्या हो सकते हैं?
अल्जाइमर्स रोग के कारण हम हमारे रोज के काम भी ठीक से नहीं कर पाते हैं। इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों को चीजों को याद रखना, गणना करना, दूसरों से संपर्क बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इस रोग के शुरुआती 10 लक्षण या संकेत ये हो सकते हैं।

  1. मेमोरी लॉस: अल्जाइमर्स रोग का सबसे आम लक्षण है याददाश्त का कम होना। खासतौर से शुरुआती स्टेज में। अगर व्यक्ति हाल में जानी हुई चीजों को तुरंत भूल जाता है तो यह शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।
  2. प्लानिंग और प्रॉब्लम सॉल्व करने में मुश्किल: डिमेंशिया से जूझ रहे लोग किसी प्लान को बनाने या उसे मानने में परेशानी महसूस कर सकते हैं। इसके अलावा नंबरों के साथ काम करने में भी इन्हें परेशानी होती है। लोगों को कोई रेसिपी या मासिक बिल याद रखने में मुश्किल हो सकती है। इसके अलावा उनको ऐसे काम करने में काफी समय लगता है, जिन्हें वे बड़ी आसानी से कर लेते थे।
  3. आसान चीजों को भूलना: अल्जाइमर्स पीड़ित व्यक्ति रोज के काम में शामिल आसान चीजों को भी पूरा करने में दिक्कत का सामना करता है। जैसे उन्हें अपने पसंदीदा खेलों के नियम याद नहीं रहते या किराना लिस्ट नहीं बना पाते।
  4. जगह या समय के साथ कंफ्यूजन होना: लोगों को समय और जगह का ध्यान नहीं रहता है। उन्हें हाल ही में हुई किसी चीज को समझने में वक्त लगता है। इसके अलावा कई बार उन्हें यह भी पता नहीं चल पाता कि वे कहां हैं और वहां तक पहुंचे कैसे।
  5. चित्रों, रंगों और संतुलन में दिक्कत: मरीज को नजर की भी परेशानी हो सकती है। हो सकता है कि वे किसी चीज का संतुलन बनाने और पढ़ने में परेशानी महसूस करें। इसके साथ ही हो सकता है कि वे दूरी और रंग का भी पता न कर पाएं।
  6. बोलने-लिखने में परेशानी: बातचीत में परेशानी होना भी एक बड़ा लक्षण माना जाता है। अल्जाइमर्स से जूझ रहे लोग किसी भी बातचीत में शामिल होने में दिक्कतों का सामना करते हैं। हो सकता है कि वे बातचीत को बीच में ही छोड़कर चले जाएं या उन्हें पता ही न चले कि आगे बोलना क्या और अपनी ही बात को दोहराते रहें। उन्हें शब्दों के साथ भी परेशानी हो सकती है या यह भी हो सकता है कि किसी जानी पहचानी चीज को वे गलत नाम से पुकारें।
  7. चीजें रखकर भूल जाना: मरीज अपनी चीजों को अजीब जगह पर रख देते हैं या रखकर भूल सकते हैं। हो सकता है कि वे रास्ते का पता नहीं लगा पाएं, जहां उन्होंने चीजों को रखा था। इसके अलावा यह भी मुमकिन है कि वे दूसरों पर चीजों को चुराने के आरोप लगाएं। यह बीमारी के बढ़ने का संकेत है।
  8. चीजों को समझने में मुश्किल: इस बीमारी में हो सकता है कि मरीजों को फैसले लेने में परेशानी आए। उदाहरण के लिए किसी को पेमेंट करना या खुद को साफ रखने की आदतों में कमी लाना।
  9. पुरानी आदतें छोड़ देना: अल्जाइमर्स बीमारी के साथ जी रहा व्यक्ति लोगों से बातचीत करने में परेशानी का सामना करता है। ऐसे में वे अपनी हॉबीज, सोशल एक्टिविटीज और दूसरी चीजों से दूरी बना लेता है। इसके अलावा मरीज अपनी पसंदीदा चीजों को जारी नहीं रख पाते।
  10. मूड और पर्सनालिटी बदलना: मरीज के व्यक्तित्व में भी कई बदलाव आ सकते हैं। हो सकता है कि वे भ्रमित रहने लगे, अवसाद में आ जाएं, डरने या घबराने लगें। यह भी मुमकिन है कि वे घर पर, दोस्तों के साथ दुखी रहने लगें।

आइए अल्जाइमर्स रोग के जोखिम के बारे में जानते हैं
सीडीसी के मुताबिक, वैज्ञानिक अभी तक अल्जाइमर्स रोग के कारण का सटीक पता नहीं लगा पाए हैं। हालांकि, इस बीमारी में उम्र को ही सबसे बड़ा जोखिम माना जाता है। शोधकर्ता इस बात का पता लगा रहे हैं कि पढ़ाई, खाना और वातावरण का भी असर अल्जाइमर्स बीमारी के बढ़ने पर पड़ता है या नहीं। अल्जाइमर्स एसोसिएशन के मुताबिक, ये कुछ फैक्टर्स बीमारी का जोखिम बढ़ा सकते हैं।

  • परिवार में किसी को अल्जाइमर्स: अगर परिवार में पैरेंट्स या भाई-बहन को अल्जाइमर्स है तो इससे दूसरे सदस्यों में भी बीमारी विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों को इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि परिवार में अल्जाइमर्स फैलने का क्या कारण हैं, लेकिन जेनेटिक्स और वातावरण इसके कारण हो सकते हैं।
  • जेनेटिक्स: शोधकर्ताओं ने कई जीन वैरिएंट्स तलाश की है, जो अल्जाइमर्स बीमारी बढ़ने की संभावनाएं बढ़ाते हैं। APOE-e4 जीन को सबसे आम जोखिम वाला जीन माना जाता है। अनुमान है कि यह जीन अल्जाइमर्स बीमारी के एक चौथाई मामलों में बड़ी भूमिका निभाता है।
  • कार्डियो-वेस्कुलर बीमारी: शोध बताते हैं कि मेंटल हेल्थ के तार दिल और ब्लड वेसल्स से जुड़े होते हैं। दिमाग को काम करने के लिए खून से ऑक्सीजन और न्यूट्रिएंट्स मिलते हैं और दिल खून को दिमाग तक पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाता है। इस वजह से जो फैक्टर्स कार्डियो-वेस्कुलर (दिल की) बीमारी का कारण बनते हैं, वे अल्जाइमर्स और दूसरे डिमेंशिया को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
  • माइल्ड कॉग्निटिव इंपेयरमेंट (MCI): MCI के लक्षणों में सोचने की क्षमता में बदलाव शामिल हैं, लेकिन यह लक्षण रोज के जीवन को प्रभावित नहीं करते हैं। इसके अलावा MCI के लक्षण अल्जाइमर्स जितने गंभीर भी नहीं होते हैं। मेमोरी से जुड़ी MCI होने अल्जाइमर्स और दूसरे डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है। हालांकि, कई मामलों में MCI बढ़ती नहीं है।

अल्जाइमर्स रोग की तीन स्टेज
शुरुआती स्टेज (हल्का): अल्जाइमर्स की शुरुआती स्टेज में व्यक्ति सारे काम करता है। जैसे- ड्राइविंग करना, काम करना और सोशल एक्टिविटीज में शामिल होना। इसके बावजूद व्यक्ति को ऐसा महसूस हो सकता है कि वो कुछ भूल रहा है। जैसे- शब्द, जगह। इस स्टेज में लक्षण एकदम नजर नहीं आते, लेकिन परिवार और दोस्त बदलाव को नोटिस कर सकते हैं। इसके अलावा डॉक्टर्स भी कुछ खास डायग्नोस्टिक टूल्स से लक्षणों का पता कर सकते हैं।

इस स्टेज में आने वाली आम परेशानियां....

  • गलत शब्द या नाम बोलना।
  • हाल ही में पढ़ी हुई किसी चीज को भूलना।
  • कीमती चीजों को खोना या गलत जगह पर रख देना।
  • प्लानिंग और ऑर्गेनाइज करने में परेशानी महसूस करना।

मिडिल स्टेज (सामान्य)
अल्जाइमर्स रोग की यह स्टेज सबसे लंबी स्टेज होती हैं और सालों तक चलती है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, मरीज को ज्यादा केयर की जरूरत होती है। अल्जाइमर्स की मिडिल स्टेज में डिमेंशिया के लक्षण स्पष्ट होते हैं। व्यक्ति नाम के साथ कंफ्यूज, नाराज या चिढ़ जाता है। इसके अलावा मरीज अलग तरह से व्यवहार करने लगता है, जैसे- नहाने के लिए मना कर देना। दिमाग में नर्व सेल का खराब होना व्यक्ति को अपने विचार और रोज के काम करने में और मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

लोगों में लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। इस स्टेज में यह लक्षण शामिल हो सकते हैं...

  • खुद के बारे में या किसी आयोजन के बारे में भूलना।
  • चुनौती भरे माहौल में मूडी या खुद को अलग महसूस करना।
  • खुद का पता, फोन नंबर या पुराने स्कूल के बारे में भूलना।
  • कहां हैं और आज दिन कौन सा है, इस बारे में कंफ्यूजन महसूस करना।
  • मल-मूत्र पर नियंत्रण करने में मुश्किल होना।
  • सोने के तरीके में बदलाव। जैसे- दिन भर सोना और रात पर बेचैन रहना।

लेट स्टेज (गंभीर)
इस बीमारी की आखिरी स्टेज में डिमेंशिया के लक्षण बहुत गंभीर हो जाते हैं। मरीजों को बातचीत करने और अपने आसपास के वातावरण को नियंत्रित करने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस स्टेज में व्यक्ति शब्द या वाक्य कह सकता है, लेकिन अपना दर्द बताना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। लगातार मेमोरी का खराब होना और व्यक्तित्व में बदलाव आने के कारण मरीज को देखभाल की जरूरत होती है।

इस स्टेज में मरीज ऐसा महसूस कर सकते हैं....

  • रोज देखभाल की जरूरत पड़ती है।
  • हाल ही में हुई किसी चीज को लेकर सतर्क न रहना।
  • चलने, बैठने और कभी-कभी निगलने की क्षमता में बदलाव आना।
  • बातचीत करने में परेशानी होना।
  • संक्रमण का खतरा बढ़ जाना। खासतौर से निमोनिया का।

अल्जाइमर्स रोग का इलाज क्या है?
सीडीसी के मुताबिक, फिलहाल अल्जाइमर्स रोग का कोई इलाज नहीं है। अल्जाइमर्स एसोसिएशन के अनुसार, कुछ लोगों के लिए दवाइयां अस्थाई रूप से डिमेंशिया के लक्षणों को ठीक कर सकती हैं। ये दवाइयां दिमाग में न्यूरो ट्रांसमीटर्स बढ़ा देती हैं। शोधकर्ता अल्जाइमर्स और दूसरे डिमेंशिया के बेहतर इलाज के लिए तरीकों की खोज में लगे हुए हैं।

करंट बायोलॉजी जर्नल में छपी एक स्टडी बताती है कि डिमेंशिया के इस खतरनाक प्रकार से बचने का अच्छा तरीका गहरी और ज्यादा नींद हो सकती है। इस स्टडी का नेतृत्व यूसी बार्कले के न्यूरो साइंटिस्ट मैथ्यू वॉकर और जोसेफ वीनर ने किया था।



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